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व्यक्तित्व (personality) का अर्थ , परिभाषा , प्रकार Part II

व्यक्तित्व के निर्धारक
व्यक्तित्व को प्रभावित करने में कुछ विशेष तत्वों का हाथ रहता है उन्हें हम 'व्यक्तित्व के निर्धारक' (Determinants of personality) कहते हैं। ये ही तत्व मिलकर व्यक्तित्व को पूर्ण बनाने में सहयोग देते हैं। इन्हीं तत्वों के अनुरूप व्यक्तित्व का विकास होता है।
कुछ विद्वानों ने व्यक्तित्व के निर्धारण में जैविक (Biological) आधार को प्रमुख माना है तो कुछ ने पर्यावरण संबंधी आधार को प्रधानता दी है, परन्तु व्यक्तित्व के विकास में इन दोनों निर्धारकों का हाथ रहता है।
जैविक निर्धारक निम्न चार हैं:-
1. आनुवांशिकता (Heredity)
2. स्रावी ग्रंथियां (Endocrine Glands)
3. शारीरिक गठन व स्वास्थ्य
4. शारीरिक रसायन (Body Chemistry)
पर्यावरण सम्बन्धी निर्धारक तीन हैं-
1. प्राकृतिक निर्धारक
2. सामाजिक निर्धारक
3. सांस्कृतिक निर्धारक
जैविक निर्धारक
1.    आनुवांशिकता
व्यक्तित्व में कुछ गुण पैतृक या आनुवांशिक होते हैं। शरीर का रंग, रूप, शरीर की बनावट गुणों से युक्त हो सकते हैं। इसका कारण बालक को प्राप्त हुए अपने माता-पिता के गुणसूत्र (क्रोमोसोम्स) हैं। बालक की आनुवांशिकता में केवल उसके माता-पिता की देन ही नहीं होती। बालक की आनुवांशिकता का आधा भाग माता-पिता से, एक चौथाई भाग दादा-दादी से, नाना-नानी से व आठवां भाग परदादा-दादी और अन्य पुरखों से प्राप्त होता है। अतः बालक के व्यक्तित्व पर पैतृक गुणों का प्रभाव पड़ता है। उसका रंग-रूप या शारीरिक गठन के गुण उसके माता या पिता से या उसके दादा या दादी के गुणों के अनुरूप हो सकते हैं। इसी तरह उसमें बुद्धि एवं मानसिक क्षमताओं के गुण अपने पूर्वजों के अनुरूप हो सकते हैं। कई अध्ययनों में यह देखा गया है कि पूर्वजों की मानसिक व्याधियों के गुण उनकी पीढ़ी के किसी भी व्यक्ति में प्रकट हो सकते हैं। इस तरह हम देखते हो कि पैतृक गुणों का व्यक्ति के व्यक्तित्व गठन पर कम या ज्यादा प्रभाव पड़ता है।
2.    शारीरिक गठन और स्वास्थ्य
शारीरिक गठन के अन्तर्गत व्यक्ति की लम्बाई, बनावट, वर्ण, बाल, आंखें व नाक नक्शा आदि अंगों की गणना होती है। ये शारीरिक विशेषताएं इतनी स्पष्ट होती हो कि बहुत से लोग इन्हीं से व्यक्ति का बोध करते हैं। हालांकि यह दृष्टिकोण ठीक नहीं है फिर भी ये विशेषताएं व्यक्तित्व की द्योतक अवश्य हैं। शरीर से हृष्ट-पुष्ट और सुन्दर व्यक्ति को देखकर लोग प्रभावित होते हैं। वे उसके शरीर के गठन की प्रशंसा करते हैं। इससे उस व्यक्ति के मानसिक पहलू पर प्रशंसा का प्रभाव ऐसा पड़ता है कि दूसरों की अपेक्षा वह अपने को श्रेष्ठ समझने लगता है और उसमें आत्मविश्वास और स्वावलम्बन के भाव पैदा हो जाते हैं।
शारीरिक गठन ठीक न होने और शारीरिक अंगहीनता रहने पर व्यक्ति में हीन भावना पैदा हो जाती है। वह अपने आपको गया-बीता व हीन समझता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी हो सकती है, वह अपने कार्य की सफलता में सदा आशंकित रहता है और अभाव की पूर्ति के लिए वह असामाजिक व्यवहार को अपना सकता है।
व्यक्तित्व विकास पर स्वास्थ्य का भी असर पड़ता है। जो व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है वह अच्छा सामाजिक जीवन व्यतीत करता है और उसमें सामाजिकता विकसित होती है। स्वस्थ व्यक्ति अपने कार्य को सफलता से समय पर पूरा करके अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर लेता है। इसके ठीक विपरीत अस्वस्थ व्यक्ति का व्यक्तित्व अधूरा रह जाता है। अस्वस्थता के कारण अपने कार्यों को समय पर पूरा नहीं कर पाता जिससे वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति समय पर नहीं कर पाता। उसमें कार्य करने की रुचि भी कम रहती है। अस्वस्थ व्यक्ति दूसरों को प्रभावित भी नहीं कर सकता। इस तरह, व्यक्तित्व पर शारीरिक गठन और स्वास्थ्य का काफी प्रभाव पड़ता है।
3.    अंतःस्रावी ग्रंथिया
व्यक्तितव के विकास में अन्तःस्रावी ग्रंथियों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। ये प्रत्येक मनुष्य के शरीर में पायी जाती हैं। इन ग्रंथियों को 'नलिकाविहीन ग्रंथियां' भी कहते हैं। ये बिना नलिकाओं के शरीर में स्राव भेजती हैं। इनके स्राव न्यासर या हार्मोन्स कहलाते हैं। विभिन्न ग्रंथियां एक या एक से अधिक हार्मोन्स का स्राव करती हैं। मुख्य रूप से ये ग्रंथियां 8 होती हैं। ये हैं-
1. पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland)
2. पीनियल ग्रंथि (Pineal Gland)
3. गल ग्रंथि (Thyroid Gland)
4. उपगल ग्रंथि (Parathyroid Gland)
5. थाइमस ग्रंथि (Thymus Gland)
6. अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal Gland)
7. अग्न्याशय ग्रंथि (Pancreas Gland)
8. जनन ग्रंथि (Gonad Gland)

4.    शारीरिक रसायन
अन्तःस्रावी ग्रंथियों एवं शरीर रचना के अतिरिक्त व्यक्तित्व के जैविक कारकों में शारीरिक रसायन का उल्लेख भी आवश्यक है। प्राचीन काल से मनुष्य के स्वभाव का कारण उसके शरीर के रसायन के तत्वों को भी माना गया है। ईसा से लगभग 400 वर्ष पूर्व यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक व विचारक हिपोक्रेटीज ने शरीर में पाये जाने वाले रसायनों के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव का निरूपण किया है। लगभग इस प्रकार का वर्णन आयुर्वेद में भी किया है। ये शारीरिक रसायन चार प्रकार के होते हैं।
1. रक्त, 2. पित्त, 3. कफ और 4. तित्लीद्रव्य।
रक्त की अधिकता से व्यक्ति आदतन आशावादी और उत्साही (Sanguine) होता है। पित्त की अधिकता वाले व्यक्ति चिड़चिड़े या कोपशील (Choleric) प्रकृति के होते हैं। जिस व्यक्ति में कफ अथवा श्लेष्मा की प्रधानता होती है वे शान्त व आलसी होते हैं। ऐसे व्यक्ति को श्लेष्मिक (Phelgmatic) प्रकृति का कहते हैं। जिस व्यक्ति में तिल्ली द्रव्य या श्याम पित्त की प्रधानता होती है। ऐसे व्यक्ति उदास (Melancholic) रहने वाले होते हो इन्हीं के आधार पर हिप्पोक्रेटीज ने व्यक्तित्व के प्रकारों का वर्णन किया है।

उपरोक्त जैविक कारकों के अतिरिक्त कुछ अन्य जैविक कारक भी हो जो व्यक्तित्व को प्रभावित करते हो, ये कारक हैं- बुद्धि, रंगरूप (Colour) लिंग (Sex)

Click to more :- व्यक्तित्व (personality)  Part III 
source by विकिपीडिया

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